जहाँ तक तुम्हारी नज़र में रहे हैं वहाँ तक हमेशा खबर में रहे हैं, हमे नींद आई है बिस्तर पे लेकिन मेरे ख्वाब तेरे शहर में रहे हैं, जलाया न आकर दिया यार तुमने अँधेरे में ही हम कबर में रहे हैं, किनारों ने हमसे किनारा किया है हमारे तो अरमाँ भँवर में रहे हैं, कभी चोट खायी कभी चोट दे दी कि पत्थर के जैसे डगर में रहे हैं, हरे जब तलक सारे पत्ते रहे थे तभी तक परिंदे शजर में रहे हैं, महकने लगे हैं तो हैरान क्यों हो ये काँटे गुलों के असर में रहे हैं |