रात में चाँद को देख कर ये ख़्याल आया की दूर बैठा वो भी चाँद को ही देख रहा होगा में भी जाग रहा हूं वो भी जाग रहा होगा दूर बैठे भी एक दूसरे से जूड़े हुए हैं। हम दोनो यूँ दूर बैठे बैठे ही अधूरे चाँद को पूरा कर देंगे। सबकुछ विस्तार से घटता और हम समय का सदुपयोग करते हुये पलों को सदियों में गुज़रने देते। आजकल तो सोशल नेट्वर्किंग साएट पर मिलते हैं फिर नम्बर इक्स्चेंज होते हैं और चैटिंग शुरू हो जाती है। तीसरे दिन से सेल्फ़ीस इक्स्चेंज होने लग जाता हैं। दो वीक के बाद बात और आगे बढ़ ही जाती हैं। मैं ग़लत या सही बस दो अलग अलग समय पर होने वाले एक ही अहसास को महसूस करने में परेशानी और लुत्फ़ के बदल जाने की बात याद कर रहा हूं। ख़ैर सबका अपना अपना नज़रिया होता हैं, मगर एक बार बिना सेल्फ़ीसनेस प्यार को फ़ील करके देखिये। आँखें बंद करके चाँदनी रात में "पहला पहला प्यार है पहली पहली बार है" सुनिये या कोई और गाना। पर महसूस करिये। टेक्नॉलजी ने दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत अहसास को कितना सीमित कर दिया है। बाँध दिया है। सब कुछ फटाफट।थोड़ा ठहर कर महसूस करके तो देखिये अजीब ही रुमानियत में खो जायेंगे। जीने की चीज़ को खोने न दीजिये! ये पढ़ कर किसी ख़ास कि याद आ रही हो, भले वो आपके साथ हों या न हों, तो आप लकी हैं क्योंकि आपने कुछ खोया नहीं बल्कि जिया हैं! |